शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

अपने रफ़ी साहब नई तान के साथ

परसों रफ़ी साहब की पुण्यतिथि थी और कल प्रेमचंद जी का जन्मदिन। अपन तो समंदर के बीच sailing कर रहे थे वरना वक़्त पर दोनों पर कुछ पोस्ट करते। प्रेमचंद जी मेरी कुव्वत से ज़्यादा गंभीर विषय हैं इसलिये देर से ही सही, सिर्फ़ रफ़ी जी पर पोस्ट डालकर फ़ारिग हो रहा हूँ।

रफ़ी साहब को आलोचकों ने ग़ज़ल के लिये अयोग्य कहकर ख़ारिज कर दिया था। संभवत: उन्हें सच में ऐसा लगा हो और यह भी संभव है कि वे इस बात से डरते हों कि रफ़ी साहब ग़ज़ल-जगत पर भी छा जाएंगे। सच जो भी हो, रफ़ी साहब ने ज़्यादा प्रयास नहीं किये इस ओर। तो भी उनकी गायी एक ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है। वही प्रस्तुत है आज। शमीम जयपुरी जी की ग़ज़ल को ताज अहमद ख़ान जी ने संगीत दिया है।








कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद
ज़िंदगी से मिले मौत आने के बाद


लज़्ज़त-ए-सजदा-ए-संग-ए-दर क्या कहें
होश ही कब रहा सर झुकाने के बाद


क्या हुआ हर मसर्रत अगर छिन गई
आदमी बन गया ग़म उठाने के बाद


रात का माजरा किससे पूछूँ 'शमीम'
क्या बनी बज़्म पर मेरे आने के बाद

7 टिप्पणियां:

अमिताभ मीत ने कहा…

रात का माजरा किससे पूछूँ 'शमीम'
क्या बनी बज़्म पर मेरे आने के बाद

क्या बात है. बहुत अच्छी ग़ज़ल. और रफी साहब के बारे में क्या कहना ? बहुत सुंदर प्रस्तुति. शुक्रिया.

Sajeev ने कहा…

दुर्लभ ग़ज़ल सुनाई आपनी, हिंद yugm ने दोनों महान कलाकारों को याद किया है ये भी देखियेगा podcast.hindyugm.com और kahani.hindyugm.com

Udan Tashtari ने कहा…

मौके पर एक उम्दा प्रस्तुति. आभार.

सुशील छौक्कर ने कहा…

क्या हुआ हर मसर्रत अगर छिन गई
आदमी बन गया ग़म उठाने के बाद

बहुत खूबसूरत लाईन। ऊपर से रफी जी की आवाज ने चार चाँद लगा दिये।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

der se suni..peli baar suni...behtreen post

admin ने कहा…

इस क्लासिकल रचना को सुनवाने के लिए शुक्रिया ही कहा जा सकता है।

Ek ziddi dhun ने कहा…

bhai, abhee dekha aapka blog. badhai, apke baaki dono blogs bhi raat mein dekhunga

 

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