फ़रीदा ख़ानम से इन दिनों मैं कुछ ज़्यादा ही प्रभावित हूँ और इसकी वजहें भी हैं मेरे पास। जब से गीत-ग़ज़ल पोस्ट करनी शुरु की हैं तबसे यह फ़रीदा आपा की तीसरी पोस्ट है। यह सिलसिला आगे भी जारी रखने का विचार है। मेरा उद्देश्य है कि आप लोगों के साथ संगीत की हर शक्ल बाँटू। कम से कम वह सब जो मैं सुनता हूँ।
यह ग़ज़ल मैनें बहुत ध्यान से पहली बार तब सुनी जब इसे अपनी लिखी इस कहानी में इस्तेमाल किया। तभी यह भी पता लगा कि इसके भी तीन शेर तो गाए ही नहीं गए हैं। शायद गुलाम अली साहब ने भी यह ग़ज़ल गाई है मगर मैनें कभी सुनी नहीं है। खैर छोड़िये… फ़िलहाल आप इस ग़ज़ल का लुत्फ़ लीजिये।
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी-छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया
ये सुबहो की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ चला गया
गए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अमलकशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया
6 टिप्पणियां:
गज़ल बहुत ही सुन्दर हैं। पर ये दिल को छू गया । पता नहीं क्यों?
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
मैंने उस कहानी में भी शायद इसे पसंद किया था।
ऐसे ही हम जैसे नौशखियों को इन अनमोल मोतियों से मिलवाते रहीये।
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
Bahut sundar , badhai.
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गया
बेहतरीन पढने में भी सुनने में भी ..शुक्रिया
मैंने गुलाम अली वाला वर्जन बहुधा सुना है। उन्होंने भी कमाल गाया है। आपकी वजह से फरीदा जी की आवाज़ में आज सुनने का मौका मिला। शुक्रिया।
बेमिसाल. बहुत बहुत शुक्रिया. आज शाम से मस्त हूँ संगीत में .... वाह भाई.
सुनकर बहुत आनन्द आया.आभार इस प्रस्तुति के लिए.
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