तलत साहब उन चुनिंदा गायकों में से हैं जो एक खास वर्ग की पसंद हैं और जो लोग उन्हें सुनते हैं वे अकसर तलत को बाकी गायकों पर तरजीह देते हैं। मेरे पसंदीदा गायक हालांकि रफ़ी साहब हैं मगर तलत जी के गीत मैं किसी भी वक़्त सुन सकता हूँ। कालेज के दौर में मैं तलत का इतना दीवाना था कि दोस्तों के लिये तलत नाम मेरा पर्याय बन गया था। मेरे जन्मदिन पर दोस्तों ने तलत के डयुएट्स का चार कैसेट्स का सेट भेंट किया था…
उनकी आवाज़ मखमली कही जाती है और अनिल बिस्वास से लेकर न जाने कितने लोगों के संस्मरण मैं उनके बारे में पढ़ चुका हूँ, सुन चुका हूँ। जिस पिच पर वह गाते थे उसपर तो लोगों की आवाज़ ही बंद हो जाती है।
इसीलिये मुझे हमेशा लगता रहा कि तलत ख़ास तरह के गाने ही गा सकते थे। यह भ्रम उस दिन टूटा जब एक दिन अचानक यू-ट्यूब पर रफ़ी का गाया मशहूर गाना "चल उड़ जा रे पंछी…" तलत की आवाज़ में सुना। यह गीत हाई-पिच पर गाया गया है और इसमें पर्याप्त वाइस-मौड्युलेशन है।दोनों चीज़ें एक साथ साध पाना रफ़ी जैसे चंद गिने-चुने गायकों के लिये ही संभव रहा है। तलत की क्षमता पर शक़ तो नहीं था मगर हाँ लगता था रफ़ी के कई गीत रफ़ी के अलावा उस दौर और इस दौर का कोई गायक नहीं गा सकता था। यह भ्रम कुछ हद तक ही सही, इस गाने को सुनने के बाद टूटा है।
आप भी सुनिये तलत का करिश्मा।
7 टिप्पणियां:
बहुत खूब ..शुक्रिया आप का ...
क्या बात है. बहुत खूब. ये कहाँ से निकाल लाये भाई ?? मस्त कर दिया ... शुक्रिया.
महेन जी, पता नही पर शायद सांतवी आठंवी में पढता हुंगा । तब स्कूल के पास एक पान वाली की दुकान थी जहाँ शंतरे की छोटी छोटी मीठी गोलियाँ मिलती थी। वहाँ कुछ गाने रोज सुनने को मिलते आधी छुट्टी में ये गाना भी सुनने को मिलता था इसकी शुरु की लाईन "चल उड जा रे" सुनकर वह दुकान याद आ गई।
शुक्रिया ये गाना सुनवाने का।
महेन भाई,
प्यारा गीत है ये.
इसमें तलत साहब का मख़मली अहसास तो भला लगता है लेकिन ज़िन्दगी के जिस फ़लसफ़े को रफ़ी साहब ने जिया है इसी गीत में वह बेजोड़ है. मैं तुलना नहीं कर रहा लेकिन शायद यह भी हो सकता है कि रफ़ी वर्शन बार बार सुना होने से अवचेतन मन उसी की सराहना करना चाहता हो.
तलत साहब अपने आप में एक महान गुलूकार थे और ग़ज़लों में तो ख़ैर उनका कोई जवाब नहीं है.
शानदार गीत!
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रक्षा-बंधन का भाव है, "वसुधैव कुटुम्बकम्!"
इस की ओर बढ़ें...
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकानाएँ!
संजय भाई,
मुझे लगता है तुलना न करना भी उतना ही अन्याय होगा जितना तुलना करना। आपकी संगीत की समझ गहरी दिखती है। मैं अक्षरक्ष: आपकी बात से सहमत हूँ। तलत जी के प्रयास की तारीफ़ इतने भर को ही कर रहा हूँ कि उन्होनें गाने को एक-आध जगह पर छोड़ दें तो अच्छे ढंग से निभा लिया है (रफ़ी साहब को दोहराना आसान तो नहीं)। रफ़ी साहब जिस तरह गानों में अर्थ भरा करते थे या इंप्रोवाईज़ करते थे वह तो बेजोड़ था ही। अभी उस दिन सुख़नसाज़ पर वह गुजराती ग़ज़ल सुन रहा था जहां आपने एक शब्द पर रफ़ी साहब के ईम्प्रोवाईज़ेशन पर ध्यान देने की बात कही थी वह एक उदाहरण है।
बाकी दोनों प्रकृति के दो खूबसूरत रंग की तरह हैं।
shaandar...
behtar prastuti..
aapko badhai..
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