अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी, जो बेग़म अख़्तर के नाम से ज़्यादा जानी जाती हैं, को ग़ज़लों में शास्त्रीय संगीत के सफलतापूर्वक प्रयोग करने का श्रेय जाता है। बरसों पहले जब ग़ज़लों को समझने-बूझने की कोशिशें चल रही थीं तो बेग़म अख़्तर की एक कैसेट सोतड़ू (राजेश) के पास से हाथ लगी। एक बार सुनने के बाद ही सिर भन्ना गया कि अमां ये क्या बला है। सिर-पैर कुछ समझ नहीं आया और अगले कुछ सालों तक दोबारा सुनने का इत्तेफ़ाक भी नहीं हुआ। अगले मौके पर जब सुना तो दंग रह गया (तबतक शायद समझ थोड़ी बेहतर हो गयी होगी)।
मलिका-ए-ग़ज़ल अकसर अपनी ग़ज़लें खुद ही कंपोज़ करती थीं। (वैसे मैंने नोटिस किया था कि मलिका पुख़राज ने भी अपनी कुछ बेहतरीन ग़ज़लें खुद ही कंपोज़ की थीं)। शायद अंतिम समय में बेग़म अख़्तर ने सुदर्शन फ़ाकिर की काफ़ी ग़ज़लें गाईं थीं। जितनी भी मैंने सुनीं मुझे सभी बेहद पसंद हैं; खासकर "कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया" और "ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया"। अफ़सोस कि mp3 में फ़िलहाल मेरे पास इनमें से कोई भी ग़ज़ल उपलब्द्ध नहीं है मगर जो है वह भी उतनी ही बेहतरीन है।
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मुहब्बत का भरोसा भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मुहब्बत का भरोसा भी नहीं
यूँ तो हंगामे उठाते नहीं दीवान-ए-इश्क
मगर ऐ दोस्त कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं
मगर ऐ दोस्त कुछ ऐसों का ठिकाना भी नहीं
मुद्दतें गुजरीं तेरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
मुँह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते कि फिराक़
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं
ग़ज़ल के बाकी के शेर यहां:
ये भी सच है कि मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है कि तेरा हुश्न कुछ ऐसा भी नहीं
ये भी सच है कि तेरा हुश्न कुछ ऐसा भी नहीं
दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में
लेकिन इस जल्वागाह-ए-नाज से उठता भी नहीं
लेकिन इस जल्वागाह-ए-नाज से उठता भी नहीं
बदगुमां होके न मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं
ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह मुझसे तो मेरी रंजिश-ऐ-बेजा भी नहीं
आह मुझसे तो मेरी रंजिश-ऐ-बेजा भी नहीं
बात ये है कि सुकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुंज-ए-जिन्दा भी नहीं बौशाते सेहरा भी नहीं
सौदा - पागलपन, इश्क, तर्क-ए-मुहब्बत - प्रेमांत, यगान - अज़ीज़
8 टिप्पणियां:
हम तो अब तक बेग़म अख्तर के ही नाम से जानते थे...
इतना बढ़िया ब्लॉग, आज तक मैं देख ही नहीं पाया.. अभी अभी गंगू बाई हंगल और विदुषी बेगम अख्तर को सुना है.. तबीयत खुश हो गई।
बहुत बहुत धन्यवाद।
बाकी की रचनायें अब सुनूंगा उससे पहले आपके ब्लॉग का लिंक महफिल के साईडबार में जोड़ लूं..
:)
अद्भुत !!! आनन्द में डूब गये-वाह !! बहुत आभार आपका!
kya baat hai..wah!!
वाह क्या बात है ...... अब आया न मज़ा !
यहाँ और सुनिए ..
http://kisseykahen.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A5%9A%E0%A4%AE%20%E0%A4%85%E0%A5%99%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0
और यहाँ भी ...
http://sukhansaz.blogspot.com/2008/08/blog-post_08.html
बहुत खूब !
बेगम के जादू का क्या कहना !
- लावण्या
महेन जी, बिगाड़ कर ही छोड़ोगे। खैर जिनसे कभी परिचय नही हुआ था केवल कभी कभी नाम सुन लिया था उनसे आपने परिचय कराया। बहुत ही उम्दा।
महेन भाई ,
मेरा मालवा वर्षा को तरस रहा है.
उमस भरा रहता है पूरा दिन.
ऐसे में अख़्तरी बाई का आना.....
मन तक बरस गए..आसमाँ मे रूके बादल.
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