रविवार, 24 अगस्त 2008

पंडित भीमसेन जोशी की आवाज़ में एक भजन

आज भजन पेश करने के पीछे यह औचित्य नहीं कि मैं चार दिन पहले ही पिता बना हूँ (और इसीलिये ग़ायब भी था) इसलिये भक्ति-भावना से भरकर ऐसा कर रहा होऊँ, यह भी नहीं कि मैं भक्त किस्म का प्राणी होऊँ।
कारण मात्र इतना है कि पंडित भीमसेन जोशी का यह मराठी भजन मुझे काफ़ी अपीलिंग लगा और लंबे अरसे से इसे सुनता आ रहा हूँ (बग़ैर समझे)। एक मराठी सहकर्मी से जब अर्थ की बाबत पूछा तो उसका जवाब और भी ज़्यादा उलझाने वाला था। उसके अनुसार इसमें श्रीराम के वनवास के बारे में कहा गया है। "क्या कहा गया है?" मैंने पूछा तो उसका जवाब था, "उनके वनवास के बारे में।"
"अरे वनवास के बारे में बताया जा रहा है।" उसने कहा।
मैंने पूछा, "वही तो। क्या बताया जा रहा है?"
"वनवास के बारे में।" उसके जवाब में कोई फेरबदल नहीं हुआ तो मुझे लगा पूछना व्यर्थ है। मतलब तो मुझे आज भी नहीं मालूम।
किस राग पर आधारित है या बंदिश कौनसी है इसका भी मैं पता नहीं लगा पाया। सच तो यह है कि जब पहली बार सुना था तो पता ही नहीं था कि भजन है मगर बंध गया था सुनकर। इसलिये मैं अपने को परे सरकाकर भजन को आगे कर देता हूँ। बस इतना और कि भजन समर्थ रामदास का है और संगीत राम फाटक का।



आरंभी वंदीन अयोध्येचा राजा ।
भक्ताचीया काजा पावत असे ॥१॥

पावत असे महासंकटी निर्वाणी ।
रामनाम वाणी उच्चारीत ॥२॥

उच्चारिता राम होय पाप चर ।
पुण्याचा निश्चय पुण्यभूमी ॥३॥

पुण्यभूमी पुण्यवंतासीं आठवे ।
पापीयानाठवे काही केल्या ॥४॥

काही केल्या तुझे मन पालटेना ।
दास म्हणे जन सावधान ॥५॥

15 टिप्पणियां:

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति है महेन ।
अच्छा लगा। पंडितजी मेरे भी प्रिय गायक हैं और इनके मराठी अभंग और भजनों से ही मेरा कुछ कुछ मराठी के प्रति लगाव बढ़ा है वर्ना अपन तो ठेठ उत्तर भारतीय ही हैं।
रचना समर्थ रामदास की है और यह राग है कलावती।
करुणा और विनय को इस राग में निबद्ध सुरों के जरिये जैसी भावाभिव्यक्ति मिलती है वह अवर्णनीय होती है।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

पंडित जी को सुनना हमेशा ही आत्मिक लगता है।

जितेन्द़ भगत ने कहा…

जब मैं छठी-सातवीं क्‍लास में था, तब मेरे हॉस्‍टल में सुबह 5 बजे भीम सेन जोशी का भजन सुनाकर हमें उठाया जाता था। तब तो इससे हम सभी हॉस्‍टलवासी को चीढ़ हो गई थी। पर आज आपके माध्‍यम से ये भजन सुनकर यादों का सैलाब ऐसा उमड़ा कि‍ शब्‍दों में बयॉं करना मुमकि‍न नहीं।
मेहरबानी होगी यदि‍ इनके इस गीत को पोस्‍ट कर दें- ये तनू मुंडना वे मुंडना(शायद यही लाइन है)

साथ ही, पि‍ता बनने की हार्दि‍क बधाई।
खैर,

अमिताभ मीत ने कहा…

आनंदम भाई. आनंदम.

Sajeev ने कहा…

महेन भाई, आनंद आ गया, संगीत के रसिया हैं आप भी, कभी "आवाज़ ' पर भी तशरीफ़ लाईये

Abhishek Ojha ने कहा…

संगीत, आवाज, जोशीजी, सब ठीक...

पर पहले बधाई स्वीकारें भाई !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

पँडित भीमसेन जोशी के सिँह घोष भरे स्वर भक्ति की गँगा बहाने मेँ सक्षम हैँ !
सँतान प्राप्ति के लिये आप दोनोँ को बधाई और बलाक को मेरे आशिष दीजियेगा~`
- लावण्या

जितेन्द़ भगत ने कहा…

हो सके तो‍ इनके इस गीत को पोस्‍ट कर दें - ये तनू मुंडना वे मुंडना(शायद यही लाइन है)

(अनुपलब्‍ध हो तो बताने की कृपा करें।)

महेन ने कहा…

जितेन्द्र जी, पहले तो धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं के लिये। यह गीत तो मेरे पास नहीं है।

महेन ने कहा…

नवागंतुक ने आप सभी को चरण-स्पर्श भेजा है और धन्यवाद कहा है अपने पिता के ब्लोग पर बने रहने के लिये। :D

Radhika Budhkar ने कहा…

आपका ब्लॉग आज देखा बहुत अच्छा लिख रहे हैं और ऑडियो भेज रहे हैं ,बहुत बहुत बधाई

नीरज पाटकर ने कहा…

मै मराठी हूं । आपको आपके मराठी सहकर्मी ने इस भजन का जो अर्थ बताया है वह सही नही है ।

यह भजन श्रीराम के वनवास पर कोई टिप्पणी नही करता । बल्की इसमें भगवान श्रीराम की आराधना की गयी है । भजन का यथाशक्ती हिंदी रुपांतर करने की कोशिश करता हुं ।

सर्वप्रथम (मै) अयोध्याराज की उपासना करूंगा
(क्योंकि)यह भक्तोंकी पुकार को सुनते है ॥१॥

महासंकट आता है तो उसका निर्वाण यह करते है
(मै तो बस) रामनाम जपता हूं ॥२॥

रामनाम जपता हूं तो पाप धुल जाते है ।
पुण्य निश्चित होता है और स्वर्गप्राप्ती भी ॥३॥

स्वर्गप्राप्ती का ख्याल पुण्य करनेवालोंको रह्ता है ।
(पर) पापी तो यह भूलही जाते है ॥४॥

(परंतु आज) भगवान मेरी क्युं नही सुन रहे ।
रामदास लोगोंसे कहते है सावधान हो जाईये ॥५॥

नीरज पाटकर ने कहा…

मै मराठी हूं । आपको आपके मराठी सहकर्मी ने इस भजन का जो अर्थ बताया है वह सही नही है ।

यह भजन श्रीराम के वनवास पर कोई टिप्पणी नही करता । बल्की इसमें भगवान श्रीराम की आराधना की गयी है । भजन का यथाशक्ती हिंदी रुपांतर करने की कोशिश करता हुं ।

सर्वप्रथम (मै) अयोध्याराज की उपासना करूंगा
(क्योंकि)यह भक्तोंकी पुकार को सुनते है ॥१॥

महासंकट आता है तो उसका निर्वाण यह करते है
(मै तो बस) रामनाम जपता हूं ॥२॥

रामनाम जपता हूं तो पाप धुल जाते है ।
पुण्य निश्चित होता है और स्वर्गप्राप्ती भी ॥३॥

स्वर्गप्राप्ती का ख्याल पुण्य करनेवालोंको रह्ता है ।
(पर) पापी तो यह भूलही जाते है ॥४॥

(परंतु आज) भगवान मेरी क्युं नही सुन रहे ।
रामदास लोगोंसे कहते है सावधान हो जाईये ॥५॥

महेन ने कहा…

धन्यवाद नीरज भाई,
आप बनें रहें। मैं और भी कुछ मराठी गीत लगाऊंगा कभी तो अनुवाद के लिये आपकी ही ज़रूरत पड़ेगी।

Unknown ने कहा…

कृुपा करके एक और भजन इस पृष्ट पर डाले याजसाठी केला होता अट्टहास ..शेवटचा दिस गोड व्हावा

 

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