आपने आनंदमठ तो ज़रूर पढ़ा होगा? नहीं पढ़ा? तो शायद फ़िल्म देखी होगी? कम से कम वंदे मातरम् तो ज़रूर पढ़ा-सुना होगा। मुझे दोनों ही सौभाग्य प्राप्त हुए हैं। यहां संगीत की बात होती है इसलिये उपन्यास को अभी भूल जाते हैं और ज़रा इस उपन्यास पर बनी फ़िल्म और इस फ़िल्म के एक गाने की ओर मुखातिब होते हैं।
1952 में बनी इस फ़िल्म में लता और हेमंतदा का गाया वंदे मातरम् आज भी उतना ही ओजपूर्ण है जितना उस समय था। हैरान होता हूँ कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर इस गाने को बजाने की सुध किसी को क्यों नहीं रहती। खैर, इसे भी जाने दीजिये।
हेमेन गुप्ता की इस फ़िल्म में संगीत हेमंत कुमार ने दिया था। हेमंतदा ने वैसे बहुत ही गिनी चुनी फ़िल्मों के लिये संगीत दिया और गाया। इस मामले में वे बहुत चूज़ी थे। शायद इसीलिये उनका संगीत हमेशा एक समान प्रभाव छोड़ पाता था। इस फ़िल्म से लेकर 1969 में आई अनुपमा इसके सबूत हैं।
महाकवि जयदेव की गीत-गोविंद एक अनुकरणीय काव्य-रचना रही है। (राधा-कृष्ण की अवधारणा का स्रोत बहुत हद तक यही काव्य है)। आश्चर्य नहीं यदि यह रचना फ़िल्मों को भी प्रभावित कर पाई। मगर इस रचना के किसी भी अंश पर गीत बनाना सचमुच ही चुनौतीपूर्ण रहा होगा; हालांकि यह भी याद रखने योग्य तथ्य है कि संपूर्ण गीत-गोविंद में अष्टपदी गीत हैं जिनके लिये राग और ताल के निर्देश भी कवि द्वारा व्याख्यायित हैं; तो भी आधुनिक विधा फ़िल्मी-गीत थोड़ी सहज किस्म की विधा है, इसलिये ऐसी कठिन रचना के साथ न्याय कर पाना कठिन ही रहा होगा।
यहां हेमंतदा ने एक खूबसूरत प्रयोग गीता दत्त की आवाज़ के साथ किया है। गीता दत्त प्रत्येक पद की आखिरी पंक्तियां पार्श्व में गाती हैं जो धीरे-धीरे उठते हुए मुख्य स्वर बन जाता है। गीता दत्त जी की आवाज़ भक्ति रस से वैसे भी सराबोर ही लगती है।
हेमंतदा ने गीत-गोविंद के प्रारंभ में से वंदना का एक अंश गीत के लिये उठाया है। पूरा गीत-गोविंद ही इतना गेय है कि संस्कृत होने के बावजूद आप इसे आराम से सस्वर गा सकते हैं। मुझे पढ़ते-पढ़ते ही कुछेक अष्टपदियाँ याद हो गईं (मतलब समझ न आए वो बात और है)। नीचे लिखे दे रहा हूँ कोशिश कीजिये। इस वंदना में भगवान विष्णु के दस अवतारों की स्तुति की गई है (जिसमें एक भगवान बुद्ध भी हैं और कल्कि भी)। मगर इस गीत में कुछ ही रूपों को लिया गया है। जो गीत का हिस्सा हैं उन्हें बोल्ड कर रहा हूँ जिससे फ़ालो करने में आपको कठिनाई न हो।
हरे मुरारे! मधुकैटभारे! गोपाल, गोविंद मुकुंद प्यारे!
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्
विहितवहित्रचरित्रमखेदम्
केशव धृतमीनशरीर
जय जगदीश हरे।
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे
धरणिधरणकिण्चक्रगरिष्ठे।
केशवधृतकच्छप रूप।
जय जगदीश हरे।
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलंककलेव निमग्ना।
केशव! धृतसूकररूप
जय जगदीश हरे।
तव करकमलवरे नखमद् भुतश्रंगम्
दलितहिरणयकशिपुतनुभृंगम्।
केशव! धृतनरहरिरूप
जय जगदीश हरे।
छलयसि विक्रमणे बलिमद् भुतवामन
पदनखनीरजनितजनपावन।
केशव! धृत वामनरूप
जय जगदीश हरे।
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्
स्नपयसि पयसि शमित भवतापम्।
केशव! धृतभृगुपतिरूप
जय जगदीश हरे।
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम्
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्।
केशव! धृतरामशरीर
जय जगदीश हरे।
वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम्
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम्।
केशव! धृतहलधररूप
जय जगदीश हरे।
निन्दसि यज्ञविधेरहहश्रुतिजातम्
सदयहृदयदर्शितपशुघातम्।
केशव! धृतबुद्धशरीर
जय जगदीश हरे।
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम्।
धूमकेतुमिव किमपि करालम्।
केशव! धृतकल्किशरीर
जय जगदीश हरे।
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम्
श्रृणु सुखदं शुभमं भवसारम्।
केशव! धृतदशविधरूप
जय जगदीश हरे।
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्
विहितवहित्रचरित्रमखेदम्
केशव धृतमीनशरीर
जय जगदीश हरे।
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे
धरणिधरणकिण्चक्रगरिष्ठे।
केशवधृतकच्छप रूप।
जय जगदीश हरे।
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलंककलेव निमग्ना।
केशव! धृतसूकररूप
जय जगदीश हरे।
तव करकमलवरे नखमद् भुतश्रंगम्
दलितहिरणयकशिपुतनुभृंगम्।
केशव! धृतनरहरिरूप
जय जगदीश हरे।
छलयसि विक्रमणे बलिमद् भुतवामन
पदनखनीरजनितजनपावन।
केशव! धृत वामनरूप
जय जगदीश हरे।
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्
स्नपयसि पयसि शमित भवतापम्।
केशव! धृतभृगुपतिरूप
जय जगदीश हरे।
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम्
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्।
केशव! धृतरामशरीर
जय जगदीश हरे।
वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम्
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम्।
केशव! धृतहलधररूप
जय जगदीश हरे।
निन्दसि यज्ञविधेरहहश्रुतिजातम्
सदयहृदयदर्शितपशुघातम्।
केशव! धृतबुद्धशरीर
जय जगदीश हरे।
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम्।
धूमकेतुमिव किमपि करालम्।
केशव! धृतकल्किशरीर
जय जगदीश हरे।
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम्
श्रृणु सुखदं शुभमं भवसारम्।
केशव! धृतदशविधरूप
जय जगदीश हरे।
10 टिप्पणियां:
Aanand aa gaya. Dhanyawad
आह ! महेन साहब, ये गीत ..... कुछ कह सकूँ इतनी औकात नहीं मेरी भाषा में ..... और शुक्रिया भी नहीं कहूँगा ...
ये वंदना तो हमारी दसवी के संस्कृत पुस्तक में थी. किस्मत से तब पढ़ा था... नहीं तो अर्थ तो कहाँ समझ पाते.
आनंदमठ के गीत तो कम ही सुने हैं पर अनुपमा का जवाब नहीं.
adhbut hai...zamaney pehley suna rahaa hogaa...bahut shukriyaa
महेनजी , बहुत बहुत शुक्रिया ।
दोनोँ के स्वर अति पावन हैँ इस गीत मेँ - स्व. गुरुदत्त जी व गीता दत्त की उच्च कोटी के कलाकार थ और हेमम्त दा का स्वर घोष दीव्य है !-
"गीत गोविँद " को जगन्नाथ मँदिर ओरिस्सा मेँ गाया जाता है ..उसके कुछ छँद स्वयम्` श्रीकृष्ण जी ने पूरे किये थे ..
महेन जी एक अद्वितीय प्रस्तुति ।
पिछले दिनों मुंबई में 'कीप अलाइव' के कार्यक्रम में जब दो गायकों ने इस गीत को गाया तो मन गदगद हो गया था । आप समझ सकते हैं कि जिस तरह गीता राय और हेमंत दा की आवाज़ें पार्श्व में आती हैं और फिर मुख्य स्वर बन जाती हैं उसे एक ही बार में निभाना कितना मुश्किल है । कई दिनों से ये गीत मन में गूंज रहा था । इसके बोल देकर तो आपने बहुत बड़ा अहसान की किया है ।
बहुत ही बढ़िया सुंदर है ये गीत, इस को अपनी पोस्ट पर लगा सकूं और कोई भी आए तो ये अपने आप बजने लगे वो बताइएगा, यदि बता सकें तो महेन।
आप सभी इस ब्लोग की पोस्ट्स पर आनंदम आनंदम कर सकें यही अभीष्ट है।
नितिश भाई, मेरे खयाल से bloggerDotCom में ऐसी सुविधा तो उपलब्ध नहीं है। आप एक-आध लोगों से पूछ देखिये। यदि आपको यह गीत चाहिये हो तो नि:संकोच मुझे अपना मेल आई डी भेज दीजियेगा।
"ललितलवंगलतापरिशीलनकोमलमलयसमीरे। मधुकरनिकरकरम्बितकोकिलकूजितकुञ्ज कुटीरे॥"
महेन जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद इस प्रभावी गीत के लिए.
एक टिप्पणी भेजें