बरसात आती है तो मुझे दो गीत याद आते हैं। एक तो मुन्नी बेग़म का गाया "जब सावन रुत की पवन चली…" और खासतौर पर बेग़म अख़्तर की गाई ग़ज़ल "कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया…" बेहद याद आती है; खासकर वो शेर:
"हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया"
मैं शराब के लिये बरसात का मुंह नहीं ताकता। समझदारी करके स्टाक रखता हूँ। अंग्रेज़ों के लिये भारत की बारिश कुत्ते-बिल्ली बरसने जैसी होती है मगर अपने लिये तो सावन-भादो नवजीवन का प्रतीक है, एक पर्व है। सिर्फ़ झूले पड़ने का पर्व नहीं, संगीत का पर्व भी जहां सुर और साज़ बारिश की ताल पर थिरकते हैं और बारिश के लिये भी राग निर्धारित हैं। कल झमाझम बरसा है और आज भी आसार हैं। बंगलौर में तो अभी नवंबर तक मानसून रहेगा। ऐसे में अगर मिया की मल्हार सुना जाए तो मज़ा दुगना हो जाए और अगर गंगूबाई हंगल गा रही हों तो मज़े का अनुपात कई गुना बढ़ जाता है। कल से ही बालकनी में बैठकर यही कर रहा हूँ। छोटी सी तान है फ़िलहाल के लिये।
3 टिप्पणियां:
वाह! आनन्द आ गया...आभार इस प्रस्तुति के लिए.
क्या बात है महेन भाई,
लगा मोहम्मद शाह रंगीले की सैर हो गई.
अक्का गंगूबाई के साथ तीन दिन का पावन सान्निध्य मिला था ख़ाकसार को .क्या बताऊँ कैसे बीते थे वे तीन दिन.वी.आर.आठवले और मोहन नाडकर्णी जी भी थे.
गंगूबाई यानी किराना मंदिर का सबसे ऊँचा और जगमगाता कलश.
वाह भई ! ये लाइनें तो मुझे भी बहुत पसंद है...
"हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब,
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया"
अच्छी प्रस्तुति !
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