आज भजन पेश करने के पीछे यह औचित्य नहीं कि मैं चार दिन पहले ही पिता बना हूँ (और इसीलिये ग़ायब भी था) इसलिये भक्ति-भावना से भरकर ऐसा कर रहा होऊँ, यह भी नहीं कि मैं भक्त किस्म का प्राणी होऊँ।
कारण मात्र इतना है कि पंडित भीमसेन जोशी का यह मराठी भजन मुझे काफ़ी अपीलिंग लगा और लंबे अरसे से इसे सुनता आ रहा हूँ (बग़ैर समझे)। एक मराठी सहकर्मी से जब अर्थ की बाबत पूछा तो उसका जवाब और भी ज़्यादा उलझाने वाला था। उसके अनुसार इसमें श्रीराम के वनवास के बारे में कहा गया है। "क्या कहा गया है?" मैंने पूछा तो उसका जवाब था, "उनके वनवास के बारे में।"
"अरे वनवास के बारे में बताया जा रहा है।" उसने कहा।
मैंने पूछा, "वही तो। क्या बताया जा रहा है?"
"वनवास के बारे में।" उसके जवाब में कोई फेरबदल नहीं हुआ तो मुझे लगा पूछना व्यर्थ है। मतलब तो मुझे आज भी नहीं मालूम।
कारण मात्र इतना है कि पंडित भीमसेन जोशी का यह मराठी भजन मुझे काफ़ी अपीलिंग लगा और लंबे अरसे से इसे सुनता आ रहा हूँ (बग़ैर समझे)। एक मराठी सहकर्मी से जब अर्थ की बाबत पूछा तो उसका जवाब और भी ज़्यादा उलझाने वाला था। उसके अनुसार इसमें श्रीराम के वनवास के बारे में कहा गया है। "क्या कहा गया है?" मैंने पूछा तो उसका जवाब था, "उनके वनवास के बारे में।"
"अरे वनवास के बारे में बताया जा रहा है।" उसने कहा।
मैंने पूछा, "वही तो। क्या बताया जा रहा है?"
"वनवास के बारे में।" उसके जवाब में कोई फेरबदल नहीं हुआ तो मुझे लगा पूछना व्यर्थ है। मतलब तो मुझे आज भी नहीं मालूम।
किस राग पर आधारित है या बंदिश कौनसी है इसका भी मैं पता नहीं लगा पाया। सच तो यह है कि जब पहली बार सुना था तो पता ही नहीं था कि भजन है मगर बंध गया था सुनकर। इसलिये मैं अपने को परे सरकाकर भजन को आगे कर देता हूँ। बस इतना और कि भजन समर्थ रामदास का है और संगीत राम फाटक का।
आरंभी वंदीन अयोध्येचा राजा ।
भक्ताचीया काजा पावत असे ॥१॥
पावत असे महासंकटी निर्वाणी ।
रामनाम वाणी उच्चारीत ॥२॥
उच्चारिता राम होय पाप चर ।
पुण्याचा निश्चय पुण्यभूमी ॥३॥
पुण्यभूमी पुण्यवंतासीं आठवे ।
पापीयानाठवे काही केल्या ॥४॥
काही केल्या तुझे मन पालटेना ।
दास म्हणे जन सावधान ॥५॥