बुधवार, 2 सितंबर 2015

एरेस तू

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यूरोप दूसरे विश्वयुद्ध की त्रासदी से विश्वयुद्ध के बाद भी लम्बे समय तक न सिर्फ आर्थिक, बल्कि मानसिक तौर पर भी जूझता रहा। युद्ध की क्षति से उबरने में इन देशों को काफी वक़्त लगा। इस बीच यूरोपीयन ब्राडकास्टिंग यूनियन ने लोगों के हल्के-फुल्के मनोरंजन के लिए गानों की एक सालाना प्रतियोगिता शुरू करने का निर्णय लिया। यह १९५५ की बात है। अगले साल धूमधाम से यूरोपीयन सॉन्ग कॉन्टेस्ट की शुरुआत लुगानो, स्विट्ज़रलैंड में हुई। इस प्रतियोगिता को यूरोविज़न कांटेस्ट के  नाम से जाना गया। पहले साल सात देशों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। आजतक तकरीबन ५२ देश इस प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं और इस कार्यक्रम को न सिर्फ सबसे लम्बे समय चलने वाला कार्यक्रम माना जाता है बल्कि यह सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले टीवी कार्यक्रमों में से है।

इस कार्यक्रम की खूबसूरती इसमें है कि लगभग सभी देशों से आने वाले गीत आपको पसंद आएंगे। १९५६ का पुरस्कार स्विट्ज़रलैंड को "रिफ़्रेन" गीत के लिए मिला। खैर, इस गीत के बारे में बात फिर कभी। मेरा ध्यान जिस गीत ने एकाएक खींचा था वह १९७३ की प्रतियोगता में  दूसरा स्थान पाने वाला एक गीत था, जिसका नाम आप ऊपर पढ़ चुके हैं। हिस्पानी बैंड "मोसेदादेस" को अपने गीत "एरेस तू" के लिए यह पुरस्कार मिला था। बाकी गीतों की अपेक्षा यह ज़्यादा कर्णप्रिय गीत है; इतना कि इसका अंग्रेजी वर्शन "टच द विंड" भी खासा मक़बूल हुआ था अंग्रेजी के अलावा मोसेदादस ने ही इस गीत के अलग संस्करण पांच अलग भाषाओं में गाए। इसके बाद तो इस गीत को कई अन्य भाषाओं में अलग-अलग लोगों द्वारा गाया गया।

पिछले दिनों एक ख़ास प्रोजेक्ट के लिए मैंने अपनी टीम में एक ब्राज़ीलियाई, एक स्पेनी, एक ताईवानी और एक जापानी कन्या को छः - छः महीनों के लिए लिया। इत्तेफ़ाकन ब्राज़ीली और स्पेनी कन्याएं एकनामा हैं - आक़ेल; हालांकि लिखने का तरीका अलग-अलग है। बहरहाल, एक-दूसरे की संस्कृतियों को समझने को कोशिश करते हुए हमारी अक्सर चाय-कॉफ़ी के दौरान कभी चीन-जापान, कभी ब्राज़ील और कभी स्पेन-भारत के बारे में बातें होती हैं। संगीत इन चर्चाओं का अनिवार्य अंग है। एक दिन हिस्पानी संगीत की चर्चा छिड़ी तो मुझसे पूछा गया कि मुझे क्या और कौनसे गायक/बैंड पसंद हैं। ज़ाहिर है खुलिओ इग्लेसिआस इनमे से एक नाम थे। दूसरा कोई नाम मैंने नहीं लिया लेकिन मोसेदादस का ज़िक्र किया। हिस्पानी आक़ेल प्रतिक्रियास्वरूप खिलखिला दी और बोली, "आप अपने पैदा होने से पहले के गाने सुनते हो?"

दूसरी आक़ेल ने मेरा समर्थन करते हुए कहा कि उसे रोबेर्टो कार्लो के गाने बेहद भाते हैं और वह भी उसके पैदा होने से पहले गाता था। लेकिन जो बात नोटिसेबल थी वह उसने बाद में कही, "संगीत की कोई उम्र नहीं होती।"



नीचे गीत के बोल पहले स्पेनिश में, फिर अंग्रेजी में।

Como una promesa, eres tu, eres tu
Como una manana de verano
Como una sonrisa, eres tu, eres tu
Asi, asi, eres tu.
Toda mi esperanza, eres tu, eres tu
Como lluvia fresca en mis manos
Como fuerte brisa, eres tu, eres tu
Asi, asi, eres tu 
Eres tu como el agua de mi fuente 
(Algo asi eres tu)
Eres tu el fuego de mi hogar
Eres tu como el fuego de mi hoguera
Eres tu el trigo de mi pan 
Como mi poema, eres tu, eres tu
Como una guitarra en la noche
Todo mi horizonte eres tu, eres tu
Asi, asi, eres tu 
Eres tu como el agua de mi fuente
(Algo asi eres tu)
Eres tu el fuego de mi hogar
Eres tu como el fuego de mi hoguera
Eres tu el trigo de mi pan 
Eres tu... 

[English translation]
Like a promise, you are, you are
Like a summer morning
Like a smile, you are, you are
Like that, like that, you are
All my hope, you are, you are
Like fresh rain in my hands
Like a strong breeze, you are, you are
Like that, like that, you are

You are like the water of my source
(Something like that, you are)
You are like the fire of my home
You are like the fire of my bonfire
You are like the wheat of my bread
You are
Like a poem, you are, you are
Like a guitar in the night
My whole horizon, you are, you are
Like that, like that, you are


यह माना जाता रहा है कि यह गीत यूगोस्लाविया के १९६६ के एक गीत "Brez besed" की कॉपी है। मेरी राय में इस गाने में युगोस्लावी गाने का प्रभाव संभवतः हो लेकिन इसके बावजूद अपनी संरचना और भव्यता में एरेस तू Brez besed से अलग खड़ा नज़र आता है। फिलहाल तो आप इस गीत का लुत्फ़ लीजिये। 

बुधवार, 5 जून 2013

फिर इलायाराजा और थोड़ा सा सावन

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मानसून ने दक्षिण में अभी दस्तक दी ही है लेकिन केरल और बंगलौर में एक सप्ताह पहले से ही फुहारें पड़ रही हैं - प्री-मानसून बोनान्ज़ा। बंगलौर में जब बादल छाते हैं तो छंटने का नाम नहीं लेते। मानव की करतूतों से बौराया मानसून अगर सुर में रह पाया तो नवंबर तक सूरज की छुट्टी। इस बीच यूहीं परसाई को पढ़ने बैठ गया और "आयी बरखा बहार" और "राम का दुःख और मेरा" जैसे निबंधों पर अटक गया। पिछले बृहस्पत शाम को ताबड़तोड़ बारिश हुई और बंगलौर के निचले इलाकों में पानी भर गया। लोगों के घरों के तालाब हो जाने की तस्वीरें तो हर साल अखबारों में छपती ही हैं लेकिन इस बार यह मानसून के आने से पहले ही हो गया है। उसपर तुर्रा यह कि इस बार मानसून के पिछले कई सालों के रिकार्ड तोड़ने की उम्मीद की जा रही है। यानि जिन घरों में सिर्फ तालाब बना करते थे वहां अब कृष्णा-कावेरी बहेंगीं। जो बाल्टियाँ घर में पानी लाने के लिए इस्तेमाल की जाती थीं वे पानी उलीचने के लिए इस्तेमाल की जायेंगीं।
हमारे देश में कुछ चीज़ें पौराणिकता और आधुनिकता से ऊपर की रही हैं। बरसाती नालों का गृहप्रवेश उन्हीं में से एक है। परसाई ने क्या लिखा था? - "आसमान के और मेरे ह्रदय में एक साथ धड़कन हो रही है। कविता लिखने के लिए व्यर्थ भय की अनुभूति नहीं बुलाता। यह वास्तविक भय है जिसके सामने कविता नहीं लिखी जाती, जान बचाई जाती है। घर में इतना पानी भर जाता है कि कभी सोचता हूँ कि अगर फर्श का न होता, तो इन कमरों में धान बो देता।" 
गरीब का सच आज भी नहीं बदला; वह सावन का लुत्फ़ लेने की बजाय घर से पानी उलीचने में व्यस्त है। ग़रीब तो खैर ग़रीब है, मेरी ही सोसाइटी में जिन लोगों के घर खुले की और हैं वे बारिश के बाद बालकनी में परदे-पोछे निचोड़ते नज़र आते हैं। भारत का मध्यवर्ग दूसरी ही किस्म की ग़रीबी का मारा है - जीरो टाउनशिप प्लानिंग।

खैर जाने दॆजिये। मैं तो मानसून के लिए पलकें बिछाए बैठा हूँ। धरती माँ को पानी मिलेगा तो प्यास मेरी बुझेगी। सावन हर जगह ही हरा होता है लेकिन बंगलौर में मौसम बहुत रोमांटिक हो जाता है और इस मदमस्त ब्लॉगर को समझ नहीं आता कि इस मौसम का लुत्फ़ कैसे उठाया जाए। अलसुबह दफ्तर को निकलो या देर रात घर के लिए मौसम एक सा ही बना रहता है। अब एक हफ्ते से समझ नहीं आ रहा कि किस किस्म का संगीत सुना जाए। बहुत खंगाला फिर भी ऐसा कुछ नहीं मिला तो मूड को साध और उससे भी ज़्यादा संभाल सके। ऐसे दिलकश मौसम में बन्दा छुईमुई किस्म का हो जाता है और मूड संभालने की ज़रुरत ज़्यादा हो जाती है। 
आज दफ्तर में एक मित्र से सिनेमा पर बात होते हुए बात निकली कि भारतीय सिनेमा में इमोशंस का बाज़ार बहुत बड़ा है और कुछ निर्देशकों ने इसे सलीके से भुनाया भी है। होते-होते मुझे मणि रत्नम की 'मौन-रागम' और 'दलपति' फिल्मों की याद हो आई। दलपति फिल्म का पहला दृश्य सिनेमाटोग्राफी और संगीत के लिहाज से गजब का है। सिनेमाटोग्राफी की बात निकली है इसलिए विडिओ लगा रहा हूँ यहाँ। सिनेमाटोग्राफी संतोष सीवान की है और ज़ाहिराना तौर पर संतोष सीवान ने अपना जादू दिखाया है। संगीत इलायाराजा का है और मुझे लगता है मानसून के रहते मैं उन्हीं की गिरफ्त में रहने वाला हूँ। यह गीत जितने बार भी देखता-सुनता हूँ टीस उठने को होती है। 
इत्तेफ़ाकन यह भी बताता चलूँ कि गीत जानकी ने गाया है जिन्होंने अभी महीने भर पहले ही पद्म-भूषण पुरस्कार यह कहकर लौटा दिया था कि दक्षिण भारतीय कलाकारों को सम्मान समय पर नहीं मिलता। इस आवाज़ का मैं फ़ैन हूँ। गीत सुनकर आप अपना मत बना सकते हैं। 




Chinna thai aval thandha rasave
Mulil thondriya chinna rosave
Solava? Araro,
Nam sondagal yar-yaro
Undhan kannil yenthaan niro?

(Chinna thai aval)

Dear one from a young mother
Little rose found among thorns
Shall I tell you, sweet one,
Who are all our kin?
Why are there tears in your eyes?
Paal manam veesum poo mugham
Paarkayil pongum thai manam
Aayiram kalam our varam
Vendhida vandha poocharam
Veyil vidhiyil vaada koodumo
Deival kovilai chendre serumo
Endhan tenare

(Chinna thai aval)

A soft flower like face which smells like milk
Your mother’s heart blooms when she looks upon you
A thousand years, I had one wish (to have my child)
You are [like] string of flowers which is result of my prayers [of thousand years]
Will you wilt out in the sun?
Or make it to the temple?
My river of honey
Solava? Araro,
Nam sondagal yar-yaro
Undhan kannil yenthaan niro?

(Chinna thai aval)
गीत के शब्द और अनुवाद यहाँ से उठाये गए हैं।
 

प्रत्येक वाणी में महाकाव्य... © 2010

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