एक आवाज़ जो इस देश के हज़ारों-हज़ार लोगों का स्वर बनी, एक स्वर जो अवसाद में, उल्लास में, यों कहें कि रोज़मर्रा के हर मूड में बतौर आदर्श लोगों के मानस में छाया रहा। अपने भीरु व्यक्तित्व की सतहों के नीचे छिपे नायक को कल्पना में जब भी लोगों ने सुरों में नहलाया, तो यही स्वर उनके ज़ेहन में अपने-आप, बग़ैर किसी प्रयास के उभरा।
पहले इन्टरव्यु:
मो. रफ़ी साहब ने जो चित्र अपनी गायकी से सजाए, वे कभी नहीं मिटने वाले। वह संयमित आवाज़ बचपन में भी मेरे लिये उत्सुकता का विषय थी। सोचता था, जिसकी आवाज़ ऐसी होगी वह दिखता कैसा होगा। जब देखा तो लगा यह तो कोई साधारण सा इंसान है, यह भगवानों की आवाज़ इसकी कैसे हो सकती है?
फिर कुछ समय बाद बी बी सी के लिये 1977 में किया गया उनका इंटरव्यु जब सुना तो कई दिनों तक विश्वास नहीं हुआ कि अपनी तानों से लोगों के अंतस गुंजायमान कर देने वाली इस आवाज़ के पीछे कितना साधारण, कितना मितभाषी और दुनियावी छलावों और पेंचों से दूर रहने वाला कैसा आमजन में घुल जाने वाला व्यक्तित्व छुपा हुआ है। सुनकर देखिये क्या यह वही आवाज़ है जो मुग़ल-ए-आज़म में हाई नोट्स पर यह गीत गा रही है?
पहले इन्टरव्यु:
अब यह गीत:
जिन्होनें ऐसे गीत रच डाले, उनके लिये क्या कहा जाए? शब्द तो छोटे पड़ जाएंगे। (इसलिये सिर्फ़ उनकी तस्वीरें देकर उन्हें याद कर रहा हूँ।)
6 टिप्पणियां:
मोहम्मद रफी साहब की आवाज में न जाने क्या असर है की वह मुहब्बत की आवाज बन गई है । बहुत सुंदर गीत सुनवाया भाई और इंटरव्यू तो अनमोल।
गीत और साक्षात्कार...आनन्द करवा दिया.
यह इंटरव्यू पहली बार सुना.जाने वो कैसे लोग थे..
बहुत अच्छा लगा.गाना बहुत बार का सुना है ,हर बार अच्छा लगता है. महेन भाई, संगीत न होता तो अपन कैसे होते, क्या करते?
बचपन में हम अक्सर झगड़ते... रफी या किशोर... फिर धीरे-धीरे समझ आई की दोनों अपनी जगह, दोनों कमाल के.
बेशक.................. बिल्कुल सही प्रस्तुति....... बधाई..........
bohat hi khoobsoorat lekhni hai aur kya lajawab gane ko pesh kiye hai. bas. mazaa aa gaya. bohat bohat dhanyavaad. (A S MURTY)
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