बुधवार, 10 सितंबर 2008

मोहे सुहागन कीनी रे

किसी-किसी के लेखन में अमरत्व का गुण इस कदर होता है कि भुलाए नहीं भूलता। सलीके से हिन्दी के पहले कवि अमीर खुसरो का लिखा कितने बरसों से गाने वालों के लिये इंस्पिरेशन रहा है। अब इस गीत को ही लीजिये। बचपन में जब वो फ़िल्मी गीत सुना था तो उसका मुखड़ा समझ में ही नहीं आया मगर बड़ा कर्णप्रिय लगा।

मेरा मानना है कि गीत अगर अर्थपूर्ण हो तो किसी भी संगीतकार के लिये उसे साध पाना आसान हो जाता है। "छाप तिलक सब छीनी रे" ऐसी ही एक रचना है। कितने ही वर्ज़न सुनाई पड़ते हैं इसके और हर एक एक से बढ़कर एक। अब इसी को लीजिये। मेहनाज़ के बारे में मैं नहीं जानता मगर उन्होनें यह गीत इतना बढ़िया गाया गया है कि एकदम बांध लेता है:


10 टिप्पणियां:

Manvinder ने कहा…

bahut sunder

siddheshwar singh ने कहा…

भाई,
यह गीत कितनी-कितनी आवजों में सुना है और हर बार ... आनंद. और क्या कहूं.
आनंद मिल रहा है>

siddheshwar singh ने कहा…

अब यह रुक क्यों जा रहा है?

महेन ने कहा…

सिद्धेश्वर जी, अपने यहाँ तो ठीक चल रहा है। अभी अभी चेक किया। ज़्यादा ही अच्छा लगे तो कहियेगा, भेज दूँगा।

siddheshwar singh ने कहा…

जरूर भेजें, इंतजार है.
इस नाचीज का ठिकाना है-karmnasha@gmail.com
और हां,गोपालबाबू गोस्वामी का एक और गीत सुनना है.

एस. बी. सिंह ने कहा…

khusaro dariyaa prem kaa ulati vaaki dhaar jo ubaraa so doob gayaa, jo doobaa so paar.

Ashok Pande ने कहा…

भौत जबर!

Abhishek Ojha ने कहा…

सच कहूं तो बस साथिया के गाने में ही ये लाइन सुनी थी तो ये भी नहीं पता था की आमिर खुसरो की रचना है... जानकारी के लिए धन्यवाद और सुनवाने के लिए भी.

Udan Tashtari ने कहा…

गजब भाई गजब!!!

आनन्द आ गया.

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह जी वाह क्या कहने मजा आ गया।

 

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