ग़ज़ल की बात हो और मलिका पुखराज की बात न हो तो बात अधूरी लगती है। राजेश की मेहरबानी से मलिका पुखराज को सुनने का मौका मिला था और पहली ही बार में "अभी तो मैं जवान हूँ" ज़बान पर चढ़ गया। मलिका की पुरकशिश आवाज़ जो दिमाग पर छाई तो फिर नहीं उतरी।
लंबे अरसे से नहीं सुना था। सोचा आप लोगों के बहाने मैं भी सुन लूँ। मलिका जैसा गाने वाला हो तो कुछ चुन पाना खुद एक चुनौती होता है कि क्या छोड़ें और क्या सुनें। इसलिए जिस पहली ग़ज़ल पर नज़र गई, वही सुना रहा हूँ। कभी महाराजा हरि सिंह के यहाँ दरबारी गायिका रही मलिका की यह ग़ज़ल बहुत पुरानी जान पड़ती है; कितनी पुरानी ये तो मैं भी नहीं जानता।
वो बातें तेरी वो फ़साने तेरे
शगुफ़्ता शगुफ़्ता बहाने तेरे
शगुफ़्ता शगुफ़्ता बहाने तेरे
बस एक ज़ख़्म नज़्ज़ारा हिस्सा मेरा
बहारें तेरी आशियाने तेरे
बहारें तेरी आशियाने तेरे
बस एक दाग़-ए-सज्दा मेरी क़ायनात
जबीनें तेरी आस्ताने तेरे
जबीनें तेरी आस्ताने तेरे
ज़मीर-ए-सदफ़ में किरन का मुक़ाम
अनोखे अनोखे ठिकाने तेरे
अनोखे अनोखे ठिकाने तेरे
फ़कीरों का जमघट घड़ी दो घड़ी
शराबें तेरी बादाख़ाने तेरे
शराबें तेरी बादाख़ाने तेरे
बहार-ओ-ख़िज़ां निगाहों के वहम
बुरे या भले सब ज़माने तेरे
बुरे या भले सब ज़माने तेरे
‘अदम’ भी है तेरा हिकायत कदाह
कहाँ तक गए हैं फ़साने तेरे
कहाँ तक गए हैं फ़साने तेरे
4 टिप्पणियां:
अब आए हो गुरु पहाड़ के नीचे ... अब हो जाए एक जुगलबंदी मल्लिका पुखराज पे ------ Jokes apart !! मस्त कर दीन्हौं गुरु ... जियो !!!
लाजवाब हैँ ...
अल्फाज़ ऐसे
मानोँ दमकते हुए नगीने होँ...
क्या बात है!
मलिका पुखराज की आवाज़ सुनने के बाद...
दिल पर वो तेरे जल्वों की बारिश
अब तो जीने की तमन्ना ही न रही.
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