सोमवार, 5 जनवरी 2009

झुक-झुक देखें नयनवा




शास्त्रीय संगीत की समझ अनिवार्य है ऐसा हमें नहीं लगता। समझ हो तो माशा-अल्लाह, न हो तो भी ठीक। ऐसे कई लोगों से साबका पड़ा है जिन्हें समझ नहीं मगर वे उसका आनंद लेना जानते हैं।

खैर हम यहाँ कोई शुद्ध शास्त्रीय संगीत नहीं लगा रहे, इसलिए यह चर्चा बेमानी है। बेग़म अख़्तर का राग पूर्वी में गाया दादरा है। सुनिए और मस्त हो जाइये।




7 टिप्पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

जो भी है सुंदर है महेन। तुम्हारी पसंद की दाद देनी पडेगी।

siddheshwar singh ने कहा…

प्यारे भाई महेन ,
इस गीत के वास्ते मैं १९ जुलाई २००८ की आधी रात से पगलाया था.'था' इसलिए कह रहा हूँकि अब आप जैसे अनदेखे भाई की वजह से मिल गया है और अब मैं इस स्थिति में आ गया हूँ कि अपने मित्रवत डाक्टर चाचा जी को सुना सकता हूं.१९ जुलाई २००८ की आधी रात को जरीना बेगम की आवाज में इसे सुनवाकर उन्होंने कहा था कि बेगम अख्तर की आवाज में इसे खोजकर ला सको तो लावो. और आज यह हाजिर है .भैया ,डाउनलोड करने की कोशिश करता हूँ . मेल कर दो तो क्या कहने. शुक्रिया कहूँ क्या!

महेन ने कहा…

काहे सर्मिन्दा कर रे हो सिद्ध भाई... सुक्रिया कि क्या दरकार है... अभी मेल किए देता हूँ...

बेनामी ने कहा…

'निहुरे निहुरे' का अर्थ ही 'झुक झुक कर' होता है।
डिवशेयर में आपको मेल करने की भी जरूरत नहीं है ,प्लेयर पर 'शेएर' पर दो बार खटका मारने पर आपका चढ़ाया राग पूरबी का पेज खुल जाता है ।

महेन ने कहा…

अफलातून भाई आप सचमुच में अफलातून हो. मैंने तो इस और कभी ध्यान ही नहीं दिया.

Jimmy ने कहा…

bouth he aacha post kiyaa hai aappne yaar keep it up

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Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

शुक्रिया मेरे संगीत ब्लाग पर आने का। आप संगीत प्रेमी हैं, ये बात आपके इस ब्लाग से पता चलता है। अच्छी पसंद होना एक बहुत बड़ी बात है। आप मेरे ब्लाग का पता यहाँ डाल सकते हैं, आज्ञा की कोई बात नहीं है।

 

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