जैसे-जैसे पश्चिम से लोग आकर भारत में बसते गए, वैसे-वैसे यहाँ की संस्कृति में बहुत कुछ जुड़ता गया। संगीत को ही लें तो आज जो शास्त्रीय संगीत का या लोक संगीत का रूप है उसमें गंगा-जमुनी संस्कृति का अद्भुत सामंजस्य है। दूसरी ओर नौटंकियों और पारसी थियेटरों से निकलकर आई फिल्मों में संगीत हमेशा महत्वपूर्ण रहा और आज भी उसके बिना फिल्में दिखाई नहीं पड़तीं।
हर फ़िल्म के विषय और देशकाल को देखते हुए उसके लिए संगीत बुनना चुनौतीपूर्ण काम रहा होगा और हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर कहा जाए कि इसके लिए संगीतकारों ने दुनियाभर से खुराक प्राप्त की। अक्सर संगीतकारों पर "इधर की मिट्टी, उधर का रोड़ा" जोड़ने का आरोप लगता है। फिल्मी संगीत कई बार सीधा-सीधा किसी पश्चिमी या किसी भी बाहरी गीत या संगीत से प्रभावित होता है या उसकी नक़ल होता है। मगर जो अन्तर मुझे आज और बीते कल की नक़ल में आता है, वह आज उस नक़ल या "प्रभाव" के हिंदुस्तानीकरण का अभाव है।
अरबी-फ़ारसी संगीत का भी हमारी फिल्मों पर खासा प्रभाव पड़ा है और यह सिर्फ़ वहां प्रचलित वाद्ययंत्रों के प्रयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि कई बार कोई गीत वहां के संगीत की संतान लगता है। प्रभाव की बात करें तो यह पुराना ओरियंटल गीत उम कुल्तहुम की आवाज़ में सुनिए और बताइये कि इसका खूबसूरती से भारतीयकरण कहाँ हुआ...
यह खूबसूरत गीत गाने वाली उम कुल्तहुम ३१ दिसम्बर १९०४ को मिस्र में पैदा हुईं थीं। उन्हें द स्टार ऑफ़ द ईस्ट कहा जाता था। १९७४ में उनकी मृत्यु के बाद आज ३०-३५ सालों बाद भी उन्हें अरब जगत की सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध गायिका मना जाता है।
2 टिप्पणियां:
GHAR AAYA MERA PARDESI......SHAYAD
is ki shuru ki dhun bilkul ghar aaya mera pardesi..wali hi hai.
-shukriya
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