सोमवार, 29 दिसंबर 2008

ऐ ‘दाग़’ तुम तो बैठ गए एक आह में




कुछ फ़नकार ऐसे होते हैं जिनकी शरण हम बार-बार जाते हैं। ऐसे कलाकारों की मेरी फ़ेहरिस्त थोड़ी लंबी है। रफ़ी और तलत साहब इसी श्रेणी में आते हैं। जब ग़ज़लों की बात आती है तो उस्ताद मेहदी हसन साहब और फ़रीदा आपा भी ऐसे फ़नकार हैं जिनकी ओर जाने का बार-बार मन करता है।

जब वैक्यूम में होता हूँ तो कानफ़ोड़ू संगीत सुनता हूँ और हिन्दुस्तानी संगीत की ओर झांकता तक नहीं। दो महीने ऐसे ही काटने के बाद आज दिनभर बेग़म अख़्तर के गीत सुनता रहा। अभी खयाल आया फ़रीदा आपा की मेरी एक बेहद पसंदीदा गज़ल का।

आप भी सुनिये मनीबैक गारंटी के साथ।






आफ़त की शोखियाँ हैं तुम्हारी निगाह में
महशर के फ़ितने खेलते हैं जल्वागाह में।

वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में।

आती है बात बात मुझे याद बार-बार
कहता हूँ दौड़-दौड़ के क़ासिद से राह में।

इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस क़दर
जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में।

मुश्ताक़ इस अदा के बहुत दर्दमंद थे
ऐ ‘दाग़’ तुम तो बैठ गए एक आह में।

4 टिप्पणियां:

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब! हर तरह का संगीत सुनना चाहिए देशी या पाश्चात्य सबमें कुछ नया और बेहतर होता है तभी संगीत की समझ निखरती है!

अमिताभ मीत ने कहा…

मस्त किया महेन भाई. सुकून मिला ....

वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं
मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में।

दोस्त क्यों याद आ जाते हैं बार बार ?

सुशील छौक्कर ने कहा…

कुछ पल को सुकून मिल गया जी।

Smart Indian ने कहा…

बहुत अच्छा लगा सुनकर, धन्यवाद!

 

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