शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

शिव बटालवी - अज दिन चड्या तेरे रंग वरगा

शिव बटालवी कोई नया नाम नहीं है। हालांकि मैं पंजाबी नहीं समझता और आजतक शिव के गीतों का कोई अनुवाद भी मेरे हाथ नहीं पड़ा, मगर जो भी छुटपुट पढ़ पाया हूँ उससे इस कवि की महत्ता पता चलती है। पंजाब में शिव घरेलू नाम है और उनके गीतों को जगजीत, नुसरत, हंस राज हंस जैसे कई लोगों ने स्वर दिया है।
पिछले दिनों मेरे हाथ शिव का हंस राज हंस का गाया एक गीत पड़ा जो मुझे अपनी कर्णप्रियता के कारण पसंद है। मतलब रत्तीभर भी समझ नहीं आता मगर अच्छा लगता है सो सुनता रहता हूँ।



3 टिप्पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शिव कुमार बटालवी की रचनाओं को जगजीत सिंह जी ने अपना स्वर दिया है...हालाँकि बहुत पुराना एल्बम है लेकिन यदि कहींसे मिल जाए तो सुनियेगा...तबियत बाग़ बाग़ हो जायेगी..."माई नी माई मेरे गीतां ने नैना विच बिरोहों दी रड़क पवे..." याने हे माँ मेरे गीत रूपी आंखों में विरह रुपी कंकड़ गिर जाए....कहने का भावार्थ ये की की मेरे गीत विरह की कथा कहें..." और एक गीत...मैं एक शिकरा यार बनाया...याने मैंने एक बाज को अपना मित्र बनाया है...
नीरज

महेन ने कहा…

नीरज जी, इस बारे में मालूम तो है मगर सुनने का इत्तेफ़ाक अभी तक बना नहीं है। पता नहीं जुगाड़ भी हो पाएगा या नहीं।

एस. बी. सिंह ने कहा…

बहुत बढिया महेन भाई। शिव बटालवी जी की एक मशहूर ग़ज़ल जगजीत जी ने गई है- मैनू तेरा शबाब ले बैठा, रंग गोरा गुलाब ले बैठा...

 

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