सोमवार, 22 दिसंबर 2008

हीरे नी रांझा जोगी हो गया

ऐसा बिरले ही होता है कि हम यहां पर एक ही कलाकार को छोटे अंतराल पर दोबार लाएं, मगर कैलाश खेर के लिये मैनें अपवाद रख छोड़ा है। वह इसलिये क्योंकि एक कलाकार को या एक तरह के संगीत को भी मैं लगातार ज़्यादा दिनों तक नहीं सुनता, मगर यहां भी अपवाद बन गया है।



पिछले महीने भर से मैं लगातार कैलाश के 10-12 गाने बार-बार सुन रहा हूँ और उनमें से भी दो गाने जो मुझे बेहद पसंद आए: पहला नैहरवा और दूसरा जो नीचे लगा रहा हूँ। नैहरवा मैनें कुछ समय पहले ही यहां लगाया था। यह गीत दरअसल दो-तीन लोकगीतों का घालमेल है और फ़्यूज़न होने के बावजूद मुझे बेहद अच्छा लगा।




4 टिप्पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

बढ़िया। पंजाबी गीत सुनने का अपना ही मजा है। धन्यवाद।
घुघूती बासूती

एस. बी. सिंह ने कहा…

मैं अब तक इस गीत को उस्ताद नुसरत फतह अली खां साहब की आवाज़ में सुनता आया था । लेकिन यह भी बहुत अच्छा लगा । शुक्रिया।

Alpana Verma ने कहा…

ankhiyan udeekhdiyan....is mein in ki awaaz mein achcha bass sunayee de raha hai--huski pan kam hai.Kailash kher ka apna ek alag andaaz hai-wahi un ki khaseeyat.


-Thanks for your visit and appreciating collection of rare songs on my blog-
With regards

बेनामी ने कहा…

Aw, this was a really nice post. In idea I would like to put in writing like this additionally - taking time and actual effort to make a very good article… but what can I say… I procrastinate alot and by no means seem to get something done.

 

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