इस पोस्ट का इधर लग पाना तकरीबन १०-११ महीनों तक लगातार स्थगित होता रहा. विश्वास कीजिए कि इससे ज़्यादा दिनों तक मैंने कोई पोस्ट टाली नहीं है और इतने लोगों के हाथ-पैर नहीं जोड़े जितने इस पोस्ट के लिए.
इलयाराजा का नाम उत्तर भारत में अपरिचित नहीं हैं. अक्सर दक्षिण भारतीय अपने लिए उत्तर भारत में तब तक जगह नहीं बना पाते, जबतक वे वहां जाकर कुछ काम न करें. बहुत ही कम लोग इस मामले में अपवाद बन पाए हैं. इलयाराजा ऐसे ही हस्तियों में से हैं. फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि आज भी ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्होंने इलायाराजा का नाम नहीं सुना है. एक तो मेरे दफ्तर में ही है, जिसे बंगलुरु आए दो महीने ही हुए हैं.
इलायाराजा के गीतों को तकरीबन एक साल पहले सुनना शुरू किया था और तबसे कुछ और नहीं सुना होगा. ऐसा अमूमन मेरे साथ नहीं होता. इसके कारण की चीर-फाड़ करने में भी वक़्त लगेगा. दक्षिण-भारतीय फ़िल्मी संगीत पूरी तरह से भारतीय होने पर भी आपको कुछ अलग महसूस होगा. सुन्दर से सुन्दर गीत में भी कम्पोसिशन में कई बार एक तरह का डिस्कनेक्ट होता है जो शुरुआत में थोड़ा चुभता है बस शुरुआत में ही. इलायाराजा के गीत भी इस मामले में अपवाद नहीं हैं. वे वाद्यों के गुरु हैं और उनके गीतों को ध्यान से सुना जाए तो आप पाएंगे कि एक तो वे वाद्यों से खेलते हैं और दूसरा चाहे कितने ही पश्चिमी वाद्यों का प्रयोग करें, उनके गीत पूरी तरह भारतीय ही रहते हैं.
शायद लोग "सदमा" फिल्म नहीं भूले होंगे. यह फिल्म दरअसल तमिल फिल्म "मून्द्रम पिरई" का रीमेक है. इस फिल्म का संगीत इलयाराजा ने ही दिया था. फिल्म का गीत "कन्ने कऴेमाने" बेहद कर्णप्रिय है और येसुदास की आवाज़ ने इस गीत में भोलापन भर दिया. हिंदी में यह गीत "सुरमई अखियों में..." है.
इस गीत के बारे में बात करते हुए मेरे तमिल मित्र इसके साथ थोड़ा रहस्य जोड़ते रहे हैं. इसे तमिल के कवि और गीतकार कन्नादासन ने लगभग अपनी मृत्युशैया पर लिखा था. यह उनका आखरी गीत था और इस बात का उनको इल्म था. कहा जाता रहा है कि इस गीत में कुछ और भी मतलब छिपा हुआ है जोकि गीत से ज़ाहिर तो होता है मगर मतलब हाथ नहीं आता.
इस पोस्ट को स्थगित करते रहने का कारण यही था. मैं वह मतलब ढूंढता रहा. मुझे इस गीत का जो अंग्रेजी तर्जुमा मिल पा रहा था, वह बेहद हास्यास्पद था. इस चक्कर में कुछ ऐसे लोगों से भी पूछ बैठा जिनसे शायद नहीं पूछना चाहिए था. ऐसा ही चलता रहा तो शायद अनुवाद की पूंछ पकड़ने की आदत छोड़ ही देनी पड़ेगी.
हाँ, अगर कभी हिंदी अनुवाद हो सका तो लगा दिया जायेगा.
हाँ, अगर कभी हिंदी अनुवाद हो सका तो लगा दिया जायेगा.
4 टिप्पणियां:
कुछ नई जानकारी मिली। शुक्रिया
वैसे सदमा फिल्म का यह गाना तो वाकई अल्टीमेट है। शब्द भी और सुनना भी
इल्लाय्या राज मेरे मनपसंद संगीतकारों में से एक है . मैंने उनका संगीत मन में बसाया है . वो वाद्यों के गुरु थे. मेलोडी और वाद्यों का ऐसा सामन्जस मैंने शंकर जयकिशन और आर डी बर्मन के बाद नहीं देखा .
ilaaya राजा का संगीत बहुत कर्ण प्रिय होता है.... और बहुत मौलिक और अछूता . . मै अक्सर सोचता कि मुम्बाईय फिल्मो मे ऐसा संगीत क्यो नही होता ? बाद की पीढ़ी ने इस अछूते पन को डाईल्यूट कर दिया ......कथित बडे बडे लोगो ने भी.... मुझे इस का अफ्सोस है
धन्यवाद मित्रो!
अजेय और विजय भाई, आपकी टिपण्णी सौ प्रतिशत सही है. मेरे एक मलयाली मित्र ने मुझसे पूछा था कि बम्बईया संगीत इतना वेस्टर्न क्यों होता है? इलयाराजा जी ने दक्षिण भारतीय फ़िल्मी संगीत की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है. इलयाराजा और येसुदास जैसे कुछ ही लोग हैं जो इतने पौपुलर होते हुए भी इतने सादे हैं कि लोग उनसे सीधा-सीधा जुड़ाव महसूस करते हैं.
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