आज हम एक और कलाकार का आगाज़ यहाँ करना चाहते हैं जोकि कम मशहूर हैं मगर उनकी चंद गज़लें हम दो दोस्तों को बेहद पसंद आयीं थीं और हमनें उनकी कैसेट मिलकर लम्बे अरसे तक तलाश की थीं। दरअसल मुन्नी बेगम मेरे दोस्त ने पहली बार मुझे सुनाई और खुद सुनी थी और एक दिन वह एकमात्र कैसेट टूट गई। जब दूसरी कैसेट ढूँढने निकले तो पता लगा कि Western कैसेट जिसने ये कैसेट भारत में लॉन्च की थी, बंद हो गई थी। यह इंटरनेट के पालने में खेलने के दिन थे और दूरियां विशेष रूप से ज्यादा थीं।
मुन्नी बेगम मुझे अपनी चंद ग़ज़लों के कारण विशेष रूप से प्रिय हैं। एक मित्र ने जब पूछा था कि मुन्नी बेगम की इन ग़ज़लों में मुझे ऐसा क्या दिखता है तो जवाब में मैं कुछ नहीं कह पाया था क्योंकि पसंद का कोई ठीक कारण मुझे समझ नहीं आया और वह निरुत्तरता अब भी बरकरार है। मसलन इसी ग़ज़ल को उदाहरणस्वरूप अगर लें तो ये मुझे बारिश के दिनों में बादलों के नीचे बैठकर सुननी बेहद पसंद है। अब हर बात की तार्किकता सिद्ध की जा सकती तो दुनिया में इतना झमेला ही क्यों होता?
10 टिप्पणियां:
महेन जी जब भी आते है आप हीरे मोती ही लाते है। सच इस गज़ल को बारिश में सुनने में एक अलग ही आनंद होगा जी। महेन जी एक गीत मैंने पिछले दिनों किसी कार्यक्रम में सुना था गजब का गीत है। आप बोल पढिए।
पहने कुर्ता पर पतलून,
आधा फागुन आधा जून,
बाबा पूर्वी धुन में गावे,
बेटा फिल्मी गीत सुनावे,
घर मा बाजे ग्रामुफून,
आधा फागुन आधा जून,
बाबा सूखी रोटी खावे,
बेटा अंडा दूध उड़ावे,
अम्मा खावे आलू भून,
आधा फागुन आधा जून
कहते है बहुत पुराना है। शायद आपने सुना हो। और हाँ उस दिन बहुत खुशी हुई जब आपने वो एस एम एस भेजा था। चलते चलते वो हमारा गोलू ................
param Anand ke example dekhkar soch raha hoon ke kaun sa exanple
use karoon.pados mein koi sharmaji hain hi nahin.kyahama ji honr chahyian ya verma ji bhi chalenge.
pl enlighten
गीत तो बढ़िया है सुशील भाई, सुनने में जाने कैसा होगा… अगर पीयूष मिश्रा जैसा कोई इसे संगीत दे तो मज़ा आ जाए।
पापा जी, आप खुद परमानंद को प्राप्त हैं यह बात मुझपर ज़ाहिर है। अगर परमानंद का कोई दूसरा ज़रिया ढूंढ रहे हैं तो शर्मा, वर्मा, वाजपेयी कोई भी चलेगें। इस बारे में प्रेमशास्त्र में कोई पक्का नियम नहीं दिखाई पड़ता।
pehli baar blog par aaya aur aapka fan ho gaya mehan ji...
जो लोग मेरे दिल में समाये रहते हैं उनमे से एक मुन्नी बेग़म साहिबा भी हैं. साल पिचियासी में पहली बार सुना था "एक बार मुस्कुरा दो ..." तब ग्यारहवी में पढ़ा करता था फिर ये आवाज़ कभी दूर नहीं हुई. एक ऐसी आवाज़ कि आप सोच में गुम हो जाएँ कि ये मुन्नी बेग़म है या व्याकुल पपीहा, एक सातवे सुर में गा रही विकल मन कोयल या फिर किसी कली के चटखने की आवाज़. बहुत आभार इस मधुर गान के लिए.
अजय झा को शुक्रिया की उन्होंने याहं तक पहुंचाया -मुन्ने बेगम के क्या कहने !
Parananand ka ek aur example yaad aa raha hai.Joote ke size se ek number chota joota pahan kar chalen.Jab aap Joota utar kar bathegen to Jo Araam milege woh Paramanand se kam nahin hoga. kabhi Kabhi chhoti chhoti Khushian bhi badi Khushion se jyada sukh deti hain.
मुन्नी बेगम का अपना एक अलग स्थान है. उनकी गज़लें - " ए मेरे हमनशीं " " लज्जत-ए-गम बढ़ा " और मेरी मनपसंद " एक बार मुस्कुरा दो अफसाना ए चमन का उन्वान ही बदल दो " सबसे अच्छी हैं. उनकी " ला पिला दे साक़िया " भी एक बिलकुल अलग रंग की ग़ज़ल है. बहुत कम लोग ऐसे हैं जो गज़लें तो सुनते हैं और साथ ही मुन्नी बेगम के बारे में जानकारी रखते हैं. उन्होंने बहुत कम उम्र में गाना शुरू किया था. उनकी आवाज में एक बहुत ही अलग तरह का खिंचाव है.
thanks mahen ji for this gazal aapka profile pada ur fav books music & movies all are awesome.
pahli baar aapke blog per aane ka anubhav achchha raha. shukriya.
Pawan Nishant
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