शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

मन कुन्तो मौला

नुसरत साहब ने परंपरागत सूफ़ी गायकी से निकलकर इस विधा को जिस तरह से आमजन से जोड़ा, वह बेमिसाल था। वे पिछली सदी के चंद बेहद ज़रूरी और प्रभावी कलाकारों में से एक थे। उनका असमय जाना बेहद दुखद था। यदि वे जीवित होते तो हमारे पास कुछ और अच्छा संगीत होता।
उनके जो गीत, कव्वालियां आदि आमतौर पर सुनाई पड़ते हैं उन्होनें उसके इतर भी बहुत कुछ काम किया है।
उनकी कुछ उत्कृष्ट रचनाओं पर नुपुर सीडीज़ ने एक लंबी चौड़ी सीरीज़ निकाली थी। उसी में से एक कव्वाली यहां आज प्रस्तुत है।
मन कुन्तो मौला।

5 टिप्पणियां:

zeashan haider zaidi ने कहा…

दिल खुश कर दिया ये शानदार कव्वाली सुनाकर

Ashok Pande ने कहा…

क्या बात है महेन भाई! सदा से प्रिय इस संगीत को यहां जगह देने का धन्यवाद! उत्तम साउन्ड क्वालटिटी!

अमिताभ मीत ने कहा…

महेन भाई,

शुक्रिया तो मैं कहूँगा नहीं ... ये वादा ज़रूर रहा कि इसी आवाज़ में कुछ सुनवाऊँगा .... फ़िलहाल मस्त हूँ ...

एस. बी. सिंह ने कहा…

सर्वकालिक श्रेष्ठ रचना। मेरी कुछ सबसे अधिक पसंदीदा रचनाओं में से एक। सुनवाने का बहुत शुक्रिया।

डॉ .अनुराग ने कहा…

भाई वाह महेन....

 

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