संगीत की त्रासदी यह है कि लोग उसी भाषा के गीत सुनते हैं जो उन्हें समझ आती है। इस वजह से अच्छे से अच्छे कलाकार क्षेत्रीय होकर रह जाते हैं और हम भी कितने सारे दुर्लभ संगीत से वंचित रह जाते हैं। पिकासो ने कहा था कि लोग पेंटिंग का आनंद उठाने की बजाए उसे समझने लग जाते हैं और जब समझ नहीं आती तो उनका उस ओर से शौक भी खत्म हो जाता है जबकि होना यह चाहिये कि पेंटिंग की व्याख्या करने की बजाए उसका मज़ा लेना चाहिये। मेरे खयाल से यह बात संगीत पर उससे भी ज़्यादा लागू होती है। जब हम संगीत सुन रहे होते हैं तो वह बैकग्राउण्ड में आपकी थकी-तनी नसों को रिलैक्स करने का काम कर रहा होता है, चाहे आप उसे समझ पा रहे हों या नहीं।
बहुत पहले से इच्छा थी कि दुनियाभर का अच्छा संगीत संग्रहित कर सकूँ। इस प्रयास में आजतक लगा हूँ। सही शब्दों में अब ही शुरु किया है और मैं भाषा को अवरोध नहीं बनने देता। जो अच्छा लगता है सुनता हूँ। रफ़ी जी ने अपने एक इंटरव्यु में कहा था कि संगीत तो समन्दर है और मैं तो एक क़तरा भी नहीं हूँ। इस समन्दर को कभी भरा नहीं जा सकता। तो लगे हुए हैं अच्छा संगीत जोड़ने में।
आज मेरे पास मराठी का एक गीत है। गीत सुनकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसे लता जी ने गाया है और पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने संगीत दिया है। मराठी जगत में यह गीत प्रसिद्व है मगर इसके बारे में मुझे अन्तरजाल पर कुछ खास जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। जितना मुझे पता चला है यह वीर सावरकर ने कालापानी जाते हुए लिखा था और इसमें वे अपनी मातृभूमि को दण्डवत प्रणाम कर रहे हैं। मुझे मराठी नहीं आती इसलिये यदि यह विवरण ग़लत हो तो कृपया मुझे माफ़ कीजियेगा और इसे सुधारने की कृपा भी कीजियेगा।
यह गीत सुनकर मुझे कुछ वर्णनातीत सा महसूस होता है। उसे खैर अभी छोड़ देते हैं। फ़िलहाल तो मैं जानना चाहता हूँ कि आपको कैसा महसूस होता है यह गीत सुनकर।
बहुत पहले से इच्छा थी कि दुनियाभर का अच्छा संगीत संग्रहित कर सकूँ। इस प्रयास में आजतक लगा हूँ। सही शब्दों में अब ही शुरु किया है और मैं भाषा को अवरोध नहीं बनने देता। जो अच्छा लगता है सुनता हूँ। रफ़ी जी ने अपने एक इंटरव्यु में कहा था कि संगीत तो समन्दर है और मैं तो एक क़तरा भी नहीं हूँ। इस समन्दर को कभी भरा नहीं जा सकता। तो लगे हुए हैं अच्छा संगीत जोड़ने में।
आज मेरे पास मराठी का एक गीत है। गीत सुनकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसे लता जी ने गाया है और पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने संगीत दिया है। मराठी जगत में यह गीत प्रसिद्व है मगर इसके बारे में मुझे अन्तरजाल पर कुछ खास जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। जितना मुझे पता चला है यह वीर सावरकर ने कालापानी जाते हुए लिखा था और इसमें वे अपनी मातृभूमि को दण्डवत प्रणाम कर रहे हैं। मुझे मराठी नहीं आती इसलिये यदि यह विवरण ग़लत हो तो कृपया मुझे माफ़ कीजियेगा और इसे सुधारने की कृपा भी कीजियेगा।
यह गीत सुनकर मुझे कुछ वर्णनातीत सा महसूस होता है। उसे खैर अभी छोड़ देते हैं। फ़िलहाल तो मैं जानना चाहता हूँ कि आपको कैसा महसूस होता है यह गीत सुनकर।
Akhercha ha tula dandavat, sodun jato gaav
daridarituni maval deva, deul sodun dhaav
tuzya shivari jagale, hasale, kadi kapari amrut pyale
aata he pari sare sarle, urala maga naav
hay soduni jate aata, odhun neli jaisi seeta
kuni na urala vali aata, dharati de ga taav
पुनश्च: नीरज भाई ने अपनी टिप्पणी में मेरी ग़लत जानकारी का सुधार किया है। नीचे अक्षरक्ष: उनकी टिप्पणी दे रहा हूँ।
- महेन भाई, यह उमदा गीत सुनने के लिये और बाकी लोगोंको सुनाने के लिये धन्यवाद । मै आपको यह बताना चाहुंगा कि मेरी जानकारी के अनुसार यह गीत बुजुर्ग मराठी कवयित्री शांताजी शेलके इनका लिखा है तथा संगीत स्वयं लताजी का है। वीर सावरकर का रचा एक अत्यंत प्रसिद्ध गीत है; पर वह अलग है। उस गीत के बोल है 'ने मजसी ने परत मातृभुमीला, सागरा प्राण तळमळला'