आज हम एक और कलाकार का आगाज़ यहाँ करना चाहते हैं जोकि कम मशहूर हैं मगर उनकी चंद गज़लें हम दो दोस्तों को बेहद पसंद आयीं थीं और हमनें उनकी कैसेट मिलकर लम्बे अरसे तक तलाश की थीं। दरअसल मुन्नी बेगम मेरे दोस्त ने पहली बार मुझे सुनाई और खुद सुनी थी और एक दिन वह एकमात्र कैसेट टूट गई। जब दूसरी कैसेट ढूँढने निकले तो पता लगा कि Western कैसेट जिसने ये कैसेट भारत में लॉन्च की थी, बंद हो गई थी। यह इंटरनेट के पालने में खेलने के दिन थे और दूरियां विशेष रूप से ज्यादा थीं।
मुन्नी बेगम मुझे अपनी चंद ग़ज़लों के कारण विशेष रूप से प्रिय हैं। एक मित्र ने जब पूछा था कि मुन्नी बेगम की इन ग़ज़लों में मुझे ऐसा क्या दिखता है तो जवाब में मैं कुछ नहीं कह पाया था क्योंकि पसंद का कोई ठीक कारण मुझे समझ नहीं आया और वह निरुत्तरता अब भी बरकरार है। मसलन इसी ग़ज़ल को उदाहरणस्वरूप अगर लें तो ये मुझे बारिश के दिनों में बादलों के नीचे बैठकर सुननी बेहद पसंद है। अब हर बात की तार्किकता सिद्ध की जा सकती तो दुनिया में इतना झमेला ही क्यों होता?