गुरुवार, 14 जनवरी 2010

मास्टर मदन - अबूझ प्रतिभा

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इंटरनेट बड़े काम की चीज़ है। इसपर घर बैठे-बैठे इतने काम हो जाते हैं कि कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। इस वजह से बैठे-बैठे कमर दर्द को न्यौता दे बैठा। मगर सुखद पहलू यह है कि इसी की बदौलत दुनिया के सुदूर कोनों पर बैठे कई लोगों से मैं आज संपर्क में हूँ और कई अनदेखे दोस्त भी हैं। इंटरनेट की वजह से ही कई तरह के संगीत से वास्ता भी पड़ा है, जो शायद वैसे मैं कभी देख-सुन नहीं पाता।
इसी की बदौलत आज मेरे पास कई अनमोल-अप्राप्य संगीत है जो शायद वैसे दुनिया की किसी लाइब्रेरी में संग्रहीत नहीं होगा और यदि होगा भी तो मेरी और मेरे जैसे कई लोगों की पहुंच से बाहर ही रहता।

मास्टर मदन के बारे में भी इंटरनेट पर चरते हुए एक दिन पता लगा। यह पता लगना वास्तव में बहुत ही सीमित है। सिर्फ़ उतना ही जान सका जितना विकीपीडिया पर उपलब्ध था। गजब का प्रतिभावान गायक सिर्फ़ 14 बरस की उम्र में चल बसा और इन्होने अपने छोटे से जीवन में सिर्फ़ आठ गीत रिकार्ड करवाए।

पहली बार सुनते हुए मुझे यकायक विश्वास नहीं हुआ कि इस उम्र में कोई गायन में इतना परिपक्व हो सकता है। उदाहरण के लिये ये ठुमरी सुनिये।



सोमवार, 4 जनवरी 2010

तस्वीर तो बन ही गई

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इस ब्लॉग पर हमनें फ़िल्मी संगीत की बात कम ही की है। इसके पीछे को पूर्वाग्रह नहीं है; बस ऐसा मौका पड़ा नहीं सिवाय तलत और रफ़ी साहब की दो पोस्टों के अलावा। पिछले काफ़ी समय से यहां पोस्ट डालने का अंतराल भी बढ़ता रहा है, जिसकी वजह से मेरे पास काफ़ी सारे विचार और पोस्ट के लिये मटीरियल इकट्ठे होते रहे हैं।

तलत और रफ़ी साहब का नाम आया है तो आज उन्हीं की बात की जाये। रफ़ी साहब किसी भी खांचे में फ़िट होने की कुव्वत रखते थे। तलत साहब ने भी लगभग हर तरह के गीत गाए हैं। यकीन न हो तो उनका एक गीत "ओ अरबपति की छोरी" सुनिये। मगर फ़िर भी यह सच है कि कुछ गीत होते थे जिन्हे सुनकर लगता था कि वे बने ही तलत साहब के लिए थे। रफ़ी साहब हालांकि सबकुछ गाने वाले गायक थे मगर कुछ गाने ऐसे थे जिन्हे सुनकर भी यही लगता था कि वे बने ही रफ़ी साहब के लिये थे हालांकि उसके कारण कुछ और होते थे।

बारादरी फ़िल्म का एक गीत है "तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती" जिसे नौशाद साहब ने संगीत दिया था। इसे तलत साहब ने गाया है हालांकि लगता है रफ़ी साहब के लिए बना है। नौशाद साहब के इस तरह के गाने रफ़ी साहब ने ज़्यादा गाये हैं संभवत: इसी वजह से मेरा यह पूर्वाग्रह बना हो।
दीवाना फ़िल्म का एक गीत है "तसवीर बनाता हूँ तेरी ख़ून-ए-जिगर से"। नौशाद साहब ने इसका भी संगीत दिया था और इसे रफ़ी साहब से गवाया था मगर लगता है जैसे तलत साहब के टिपिकल अंदाज़ पर यह गीत बेहद सूट करता।
संभव है यह सिर्फ़ मुझे ही लगता हो और किसी और को न लगा हो या शायद किसी और ने इस ओर ध्यान न दिया हो। शायद नौशाद साहब ने भी… खैर, ऐसा नहीं हो सकता कि ऐसे क्षमतावान व्यक्ति ने इस बारे में न सोचा हो। उन्होनें ज़रूर कुछ सोचकर ऐसा किया होगा। और फ़िर दोनो ही गीत बेहद खूबसूरत हैं तो मैं यही मानकर खुश रहता हूँ कि नौशाद साहब ने जो सोचा बहुत अच्छा सोचा।

दोनो ही गाने नीचे दिए हैं। ध्यान से सुनियेगा।


पहले "तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती" तलत महमूद की आवाज़ में





"तसवीर बनाता हूँ तेरी ख़ून-ए-जिगर से" मौ. रफ़ी की आवाज़ में



 

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